राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की दौड़ में पिछड़े शिवराज सिंह चौहान, निर्मला सीतारमण का नाम सबसे आगे, फिर भी बनीं रहेंगी वित्त मंत्री
11/07/2025 11:44 AM Total Views: 6487

भारतीय जनता पार्टी के संगठनात्मक ढांचे में बड़ा बदलाव तय माना जा रहा है। राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर गहमागहमी बढ़ती जा रही है और सूत्रों के अनुसार अब यह दौड़ निर्णायक मोड़ पर पहुंच चुकी है। लंबे समय से अटकलों में चल रहे कई नामों के बीच अब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण की दावेदारी सबसे मजबूत मानी जा रही है। इससे यह स्पष्ट संकेत मिलता है कि भाजपा इस बार महिला नेतृत्व की ओर बढ़ सकती है और संभवत: पहली बार किसी महिला को यह जिम्मेदारी सौंपेगी। यही नहीं, सूत्रों का दावा है कि सीतारमन पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद भी वित्त मंत्री बनीं रहेंगी। तर्क यह है कि वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी तो स्वास्थ्य मंत्री हैं। जेपी नड्डा का कार्यकाल जनवरी 2023 में समाप्त हो चुका है, ऐसे में केंद्रीय नेतृत्व पर नए अध्यक्ष की घोषणा को लेकर दबाव है। हाल ही में कई राज्यों में नए प्रदेश अध्यक्षों की नियुक्ति ने यह संकेत दे दिया कि पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव अब दूर नहीं। भाजपा के संविधान अनुसार यह प्रक्रिया अब जल्द पूरी होनी है। शिवराज सिंह चौहान, भूपेंद्र यादव, प्रह्लाद जोशी, धर्मेंद्र प्रधान, विनोद तापड़े और संजय जोशी जैसे नेताओं के नामों की चर्चा पिछले कुछ समय से चल रही थी, लेकिन अब सीतारमण का नाम जिस गति से उभरा है, उसने बाकी दावेदारों की संभावनाओं को काफी हद तक पीछे छोड़ दिया है। वित्तमंत्री रहते हुए और पूर्व रक्षामंत्री के तौर पर उनके प्रशासनिक अनुभव, वैचारिक प्रतिबद्धता और दक्षिण भारत से उनके जुड़ाव को भाजपा के लिए बहुआयामी लाभ की दृष्टि से देखा जा रहा है। सीतारमण की हालिया बैठकें – मौजूदा अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महामंत्री बीएल संतोष के साथ -इशारा करती हैं कि उन्हें लेकर पार्टी में गंभीर मंथन हो चुका है। खास बात यह है कि उनके अध्यक्ष बनने की स्थिति में भाजपा को दक्षिण भारत में अपनी कमजोर पकड़ को मज़बूत करने का अवसर मिल सकता है, जहाँ तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में पार्टी को अभी भी जमीन तलाशनी है। इस बीच डी. पुरंदेश्वरी और वनथी श्रीनिवासन जैसी अन्य महिला नेताओं के नाम भी सामने आए हैं, जो सभी दक्षिण भारत से संबंध रखती हैं। यह संयोग नहीं, बल्कि रणनीतिक सोच का संकेत है। भाजपा महिला आरक्षण विधेयक के बाद यदि शीर्ष नेतृत्व में महिला को स्थान देती है तो यह सामाजिक-सांस्कृतिक संदेश के लिहाज से भी एक बड़ा कदम माना जाएगा। उल्लेखनीय है कि भाजपा ने महिलाओं को केंद्र में रखकर कई योजनाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने महिला वोटर फोकस किया और चुनावों में महिलाओं की समस्याओं और उनके सामाधान की भी बात की। और पार्टी को चुनावों में इसका लाभ भी मिला। शौचालय को महिलाओं के मान सम्मान से जोड़ा, उज्जवला योजना के तहत 10 करोड़ सिलेंडर दिया। प्रधानमंत्री आवास योजना में महिलाओं को 60 प्रतिशत मालिकाना हक दिया और महिला रिजर्वेशन बिल संसद से पास कराया। ऐसे में पार्टी ने अब राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद की कमान महिला को सौंप कर एक नया दांव चलना चाहती है। शिवराज सिंह चौहान, जो अब नरेंद्र मोदी 3.0 सरकार में कृषि एवं ग्रामीण विकास जैसे अहम मंत्रालय संभाल रहे हैं, कभी इस दौड़ के प्रमुख दावेदार माने जा रहे थे। मप्र में 17 वर्षों तक चार बार मुख्यमंत्री और छह बार सांसद रह चुके शिवराज सिंह भाजपा की राजनीति में एक सशक्त और लोकप्रिय चेहरा रहे हैं। लेकिन पार्टी सूत्रों का कहना है कि बीएल संतोष और संघ की रणनीति के तहत अब महिला नेतृत्व को प्राथमिकता मिल रही है। सीतारमण की निरंतर उभरती स्वीकार्यता ने शिवराज की उम्मीदों को काफी कमजोर कर दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी इस चयन प्रक्रिया में परोक्ष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। 28 जून को संघ के सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और भाजपा नेतृत्व के बीच दिल्ली में हुई अहम बैठक से यह संकेत मिला है कि संघ भी अब नेतृत्व को लेकर स्पष्ट राय बना चुका है। आरएसएस की यह भी अपेक्षा रही है कि पार्टी का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथ में हो जो भाजपा की वैचारिक धारा से निकले हों, न कि अन्य दलों से आए चेहरे हों। अब यह लगभग तय माना जा रहा है कि अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा ही लिया जाएगा। उनके निर्णय को संगठन, सरकार और संघ सभी मान्यता देंगे। इसलिए राजनीतिक पंडितों की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि क्या भाजपा अपने इतिहास में पहली बार एक महिला को पार्टी अध्यक्ष बनाकर एक नए युग की शुरुआत करेगी? इस कड़वी खबर का लब्बोलुआब यह है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को लेकर चल रही अटकलों में अब वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण सबसे प्रबल दावेदार के रूप में उभरी हैं। शिवराज सिंह दौड़ में पिछड़ गए हैं। पार्टी और संघ के भीतर महिला नेतृत्व को प्राथमिकता देने की रणनीति और दक्षिण भारत में संगठन विस्तार की दृष्टि से यह निर्णय भाजपा के लिए निर्णायक साबित हो सकता है। अंतिम फैसला नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह द्वारा लिए जाने की संभावना है। हालांकि पार्टी नेतृत्व अपने फैसलों से हमेशा ही चौंकाता रहा है। इसलिए माना जा रहा है कि जिसका नाम मीडिया में उछल जाता है उसे रास्ते से हटा दिया जाता है। ऐसी स्थिति में पार्टी नेतृत्व संघ की पसंद को प्राथमिकता देता है तो संजय जोशी जैसे किसी संघनिष्ठ नेता को मौका मिल जाए तो चौंकिएगा मत।
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